विद्यार्थी वह व्यक्ति होता है जो कोई चीज सीख रहा होता है। विद्यार्थी दो शब्दों से बना होता है – “विद्या” + “अर्थी” जिसका अर्थ होता है ‘विद्या चाहने वाला’। विद्यार्थी किसी भी आयुवर्ग का हो सकता है बालक, किशोर, युवा या वयस्क। लेकिन महत्वपूर्ण बात यह है कि वह कुछ सीख रहा होना चाहिए।
संस्कृत सुभाषितों में विद्या और विद्यार्थी के बारे में बहुत अच्छी बातें कहीं गयीं हैं जैसे
काकचेष्टा बकोध्यानं श्वाननिद्रा तथैव च।
अल्पहारी गृहत्यागी विद्यार्थी पंचलक्षणम्॥
एक विद्यार्थी जीवन के पांच लक्षण
- काक चेष्टा – विद्यार्थी को हमेशा कौआ की तरह चेष्टा रखनी चाहिए, जहां-जहां ज्ञान मिल रहा हो उसे गहण कर लेना चाहिए।
- बको ध्यानं – बगुलें की तरह अपना ध्यान लगाना चाहिए जिस तरह बगुला पानी में मछली पकड़ने के लिए ध्यान लगाता है, ठीक उसी तरह विद्यार्थी को अपना ध्यान ज्ञान गहण करने में लगाना चाहिए।
- स्वान निद्रा – यह स्वान का अर्थ कुत्ता है, जिस तरह कुत्ता हल्की से आहट पर उठ जाता है कोई आलस नहीं करता है उसी प्रकार एक विद्यार्थी को कभी आलस नहीं करना चाहिए।
- अल्पहारी – विद्यार्थी को हमेशा कम खाना चाहिए जिससे उसकी पाचन क्रिया स्वथ्य रहे और आलस नहीं आयें।
- सदाचारी – विचारों में हमेशा सकारात्मक विचार ही रहने चाहिए, अपने से बड़ों व शिक्षको का सम्मान करना चाहिए। अपनों से छोटों को प्यार करना चाहिए। ये पांच लक्षण एक विद्यार्थी के अन्दर होने चाहिए या अपने जीवन में इन पांच लक्षणों को अपनाना चाहिए।
सुखार्थी वा त्यजेत विद्या विद्यार्थी वा त्यजेत् सुखम्।
सुखार्थिनः कुतो विद्या विद्यार्थिनः कुतो सुखम्॥
अर्थात् (सुख चाहने वाले को विद्या छोड़ देनी चाहिए और विद्या चाहने वाले को सुख छोड़ देना चाहिए। क्योंकि सुख चाहने वाले को विद्या नहीं आ सकती और विद्या चाहने वाले को सुख कहाँ?)
आचार्यात् पादमादत्ते पादं शिष्यः स्वमेधया ।
पादं सब्रह्मचारिभ्यः पादं कालक्रमेण च ॥
अर्थात् ( विद्यार्थी अपना एक-चौथाई ज्ञान अपने गुरु से प्राप्त करता है, एक चौथाई अपनी बुद्धि से प्राप्त करता है, एक-चौथाई अपने सहपाठियों से और एक-चौथाई समय के साथ (कालक्रम से, अनुभव से) प्राप्त करता है।
Mrs Renu Gupta
School Principal at Rahul Education, Divine Providence High School